This speech was aired on 22 February 2015 through P.M Modi’s Mann ki baat Radio Program.
Here is an excerpt from the speech.
1. अधिकतम लोगों को मैंने देखा है कि वो इसे अपने जीवन की एक बहुत बड़ी महत्वपूर्ण घटना मानते हैं और उनको लगता है कि नहीं, ये गया तो सारी दुनिया डूब जायेगी। दोस्तो, दुनिया ऐसी नहीं है। और इसलिए कभी भी इतना तनाव मत पालिये। हाँ, अच्छा परिणाम लाने का इरादा होना चाहिये। पक्का इरादा होना चाहिये, हौसला भी बुलंद होना चाहिये। लेकिन परीक्षा बोझ नहीं होनी चाहिये, और न ही परीक्षा कोई आपके जीवन की कसौटी कर रही है। ऐसा सोचने की जरुरत नहीं है।
2. दोस्तों एक बात है जो हमें बहुत परेशान करती है। हम हमेशा अपनी प्रगति किसी और की तुलना में ही नापने के आदी होते हैं। हमारी पूरी शक्ति प्रतिस्पर्धा में खप जाती है। जीवन के बहुत क्षेत्र होंगे, जिनमें शायद प्रतिस्पर्धा जरूरी होगी, लेकिन स्वयं के विकास के लिए तो प्रतिस्पर्धा उतनी प्रेरणा नहीं देती है, जितनी कि खुद के साथ हर दिन स्पर्धा करते रहना। खुद के साथ ही स्पर्धा कीजिये, अच्छा करने की स्पर्धा, तेज गति से करने की स्पर्धा, और ज्यादा करने की स्पर्धा, और नयी ऊंचाईयों पर पहुँचने की स्पर्धा आप खुद से कीजिये, बीते हुए कल से आज ज्यादा अच्छा हो इस पर मन लगाइए। और आप देखिये ये स्पर्धा की ताकत आपको इतना संतोष देगी, इतना आनंद देगी जिसकी आप कल्पना नहीं कर सकते।
3. थोड़ा आप ओबजर्व कीजिये अपने अगल-बगल में। आपको ध्यान में आ जाएगा कि बाहरी कारणों से परेशान होने की जरुरत नहीं है। कभी-कभी कारण भीतर का होता है. खुद पर अविश्वास होता है न तो फिर आत्मविश्वास क्या काम करेगा? और इसलिए मैं हमेशा कहता हूँ जैसे-जैसे आत्मविश्वास का अभाव होता है, वैसे वैसे अंधविश्वास का प्रभाव बढ़ जाता है। और फिर हम अन्धविश्वास में बाहरी कारण ढूंढते रहते हैं। बाहरी कारणों के रास्ते खोजते रहते हैं. कुछ तो विद्यार्थी ऐसे होते हैं जिनके लिए हम कहते हैं आरम्म्भीशुरा। हर दिन एक नया विचार, हर दिन एक नई इच्छा, हर दिन एक नया संकल्प और फिर उस संकल्प की बाल मृत्यु हो जाता है, और हम वहीं के वहीं रह जाते हैं। मेरा तो साफ़ मानना है दोस्तो बदलती हुई इच्छाओं को लोग तरंग कहते हैं। हमारे साथी यार- दोस्त, अड़ोसी-पड़ोसी, माता-पिता मजाक उड़ाते हैं और इसलिए मैं कहूँगा, इच्छाएं स्थिर होनी चाहिये और जब इच्छाएं स्थिर होती हैं, तभी तो संकल्प बनती हैं और संकल्प बाँझ नहीं हो सकते। संकल्प के साथ पुरुषार्थ जुड़ता है. और जब पुरुषार्थ जुड़ता है तब संकल्प सिद्दी बन जाता है. और इसीलिए तो मैं कहता हूँ कि इच्छा प्लस स्थिरता इज-इक्वल टू संकल्प। संकल्प प्लस पुरुषार्थ इज-इक्वल टू सिद्धि।
4. अपने आप को खपा दीजिये। अपने संकल्प के लिए खपा दीजिये और संकल्प सकारात्मक रखिये। किसी से आगे जाने की मत सोचिये। खुद जहां थे वहां से आगे जाने के लिए सोचिये। और इसलिए रोज अपनी जिंदगी को कसौटी पर कसता रहता है उसके लिए कितनी ही बड़ी कसौटी क्यों न आ जाए कभी कोई संकट नहीं आता है और दोस्तों कोई अपनी कसौटी क्यों करे? कोई हमारे एग्जाम क्यों ले? आदत डालो न। हम खुद ही हमारे एग्जाम लेंगें। हर दिन हमारी परीक्षा लेंगे। देखेंगे मैं कल था वहां से आज आगे गया कि नहीं गया। मैं कल था वहां से आज ऊपर गया कि नहीं। मैंने कल जो पाया था उससे ज्यादा आज पाया कि नहीं पाया। हर दिन हर पल अपने आपको कसौटी पर कसते रहिये। फिर कभी जिन्दगी में कसौटी, कसौटी लगेगी ही नहीं। हर कसौटी आपको खुद को कसने का अवसर बन जायेगी और जो खुद को कसना जानता वो कसौटियों को भी पार कर जाता है और इसलिए जो जिन्दगी की परीक्षा से जुड़ता है उसके लिए क्लासरूम की परीक्षा बहुत मामूली होती है।
5. कभी आपने भी कल्पना नहीं की होगी की इतने अच्छे अच्छे काम कर दिए होंगें। जरा उसको याद करो, अपने आप विश्वास पैदा हो जाएगा। अरे वाह! आपने वो भी किया था, ये भी किया था? पिछले साल बीमार थी तब भी इतने अच्छे मार्क्स लाये थे। पिछली बार मामा के घर में शादी थी, वहां सप्ताह भर ख़राब हो गया था, तब भी इतने अच्छे मार्क्स लाये थे। अरे पहले तो आप छः घंटे सोते थे और पिछली साल आपने तय किया था कि नहीं नहीं अब की बार पांच घंटे सोऊंगा और आपने कर के दिखाया था।
6. कभी- कभी हम बहुत दूर का सोचते रहते हैं। कभी-कभी भूतकाल में सोये रहते हैं। दोस्तो परीक्षा के समय ऐसा मत कीजिये। परीक्षा समय तो आप वर्तमान में ही जीना अच्छा रहेगा। क्या कोई बैट्समैन पिछली बार कितनी बार जीरो में आऊट हो गया, इसके गीत गुनगुनाता है क्या? या ये पूरी सीरीज जीतूँगा या नहीं जीतूँगा, यही सोचता है क्या? मैच में उतरने के बाद बैटिंग करते समय सेंचुरी करके ही बाहर आऊँगा कि नहीं आऊँगा, ये सोचता है क्या? जी नहीं, मेरा मत है, अच्छा बैट्समैन उस बॉल पर ही ध्यान केन्द्रित करता है, जो बॉल उसके सामने आ रहा है। वो न अगले बॉल की सोचता है, न पूरे मैच की सोचता है, न पूरी सीरीज की सोचता है। आप भी अपना मन वर्तमान से लगा दीजिये। जीतना है तो उसकी एक ही जड़ी-बूटी है। वर्तमान में जियें, वर्तमान से जुड़ें, वर्तमान से जूझें। जीत आपके साथ साथ चलेगी।
7. क्या आप ये सोचते हैं कि परीक्षा आपकी क्षमता का प्रदर्शन करने के लिए होती हैं। अगर ये आपकी सोच है तो गलत है। आपको किसको अपनी क्षमता दिखानी है? ये प्रदर्शन किसके सामने करना है? अगर आप ये सोचें कि परीक्षा क्षमता प्रदर्शन के लिए नहीं, खुद की क्षमता पहचानने के लिए है। जिस पल आप अपने मन्त्र मानने लग जायेंगे आप पकड़ लेंगें न, आपके भीतर का विश्वास बढ़ता चला जाएगा और एक बार आपने खुद को जाना, अपनी ताकत को जाना तो आप हमेशा अपनी ताकत को ही खाद पानी डालते रहेंगे और वो ताकत एक नए सामर्थ्य में परिवर्तित हो जायेगी और इसलिए परीक्षा को आप दुनिया को दिखाने के लिए एक चुनौती के रूप में मत लीजिये, उसे एक अवसर के रूप में लीजिये। खुद को जानने का, खुद को पह्चानने का, खुद के साथ जीने का यह एक अवसर है। जी लीजिये न दोस्तो।
8. आपने साल भर जो मेहनत की है न, उन किताबों को वो रात-रात आपने पढाई की है आप विश्वाश कीजिये वो बेकार नहीं जायेगी। वो आपके दिल-दिमाग में कहीं न कहीं बैठी है, परीक्षा की टेबल पर पहुँचते ही वो आयेगी। आप अपने ज्ञान पर भरोसा करो, अपनी जानकारियों पर भरोसा करो, आप विश्वास रखो कि आपने जो मेहनत की है वो रंग लायेगी और दूसरी बात है आप अपनी क्षमताओं के बारे में बड़े कॉंफिडेंट होने चाहिये। आपको पूरी क्षमता होनी चाहिये कि वो पेपर कितना ही कठिन क्यों न हो मैं तो अच्छा कर लूँगा। आपको कॉन्फिडेंस होना चाहिये कि पेपर कितना ही लम्बा क्यों न होगा में तो सफल रहूँगा या रहूँगी। कॉन्फिडेंस रहना चाहिये कि में तीन घंटे का समय है तो तीन घंटे में, दो घंटे का समय है तो दो घंटे में, समय से पहले मैं अपना काम कर लूँगा और हमें तो याद है शायद आपको भी बताते होंगे हम तो छोटे थे तो हमारी टीचर बताते थे जो सरल क्वेश्चन है उसको सबसे पहले ले लीजिये, कठिन को आखिर में लीजिये। आपको भी किसी न किसी ने बताया होगा और मैं मानता हूँ इसको तो आप जरुर पालन करते होंगे।
9. स्टूडेंट्स worrier मत बनिए, warrior बनिए, चिंता में डूबने वाले नहीं, समरांगन में जूझने वाले होने चाहिए, मैं समझता हूँ कि सचमुच मैं हम चिंता में न डूबे, विजय का संकल्प ले करके आगे बढ़ना और ये बात सही है, जिंदगी बहुत लम्बी होती है, उतार चढाव आते रहते है, इससे कोई डूब नहीं जाता है, कभी कभी अनेच्छिक परिणाम भी आगे बढ़ने का संकेत भी देते हैं, नयी ताकत जगाने का अवसर भी देते है!
10. कुछ विद्यार्थी परीक्षा खंड से बाहर निकलते ही हिसाब लगाना शुरू कर देते है कि पेपर कैसा गया, यार, दोस्त, माँ बाप जो भी मिलते है वो भी पूछते है भई आज का पेपर कैसा गया? मैं समझता हूँ कि आज का पेपर कैसा गया! बीत गयी सो बात गई, प्लीज उसे भूल जाइए
11. आप अच्छा परिणाम लाने ही वाले है, आप सफल होने ही वाले है, परीक्षा को उत्सव बना दीजिए, ऐसा मौज मस्ती से परीक्षा दीजिए, और हर दिन अचीवमेंट का आनंद लीजिए, पूरा माहौल बदल दीजिये। माँ बाप, शिक्षक, स्कूल, क्लासरूम सब मिल करके करिए, देखिये, कसौटी को भी कसने का कैसा आनंद आता है, चुनौती को चुनौती देने का कैसा आनंद आता है, हर पल को अवसर में पलटने का क्या मजा होता है, और देखिये दुनिया में हर कोई हर किसी को खुश नहीं कर सकता है!
12. मुझे पहले कविताएं लिखने का शौक था, गुजराती में मैंने एक कविता लिखी थी, पूरी कविता तो याद नहीं, लेकिन मैंने उसमे लिखा था, सफल हुए तो ईर्ष्या पात्र, विफल हुए तो टिका पात्र, तो ये तो दुनिया का चक्र है, चलता रहता है, सफल हो, किसी को पराजित करने के लिए नहीं, सफल हो, अपने संकल्पों को पार करने के लिए, सफल हो अपने खुद के आनंद के लिए, सफल हो अपने लिए जो लोग जी रहे है, उनके जीवन में खुशियाँ भरने के लिए, ये ख़ुशी को ही केंद्र में रख करके आप आगे बढ़ेंगे, मुझे विश्वास है दोस्तो! बहुत अच्छी सफलता मिलेगी